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उपवन

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उपवन ,वाटिका या पार्क जो भी नाम रख लें. आप को जो पसंद हो वही पुकारें. सजीव होते हुए भी यह किसी को मजबूर नहीं करता की इसे क्या कह कर पुकारा जाता है. संबोधन से इसे फर्क नहीं पड़ता. यह देने वालों में है.हम से कुछ लेता नहीं है.

“सजीव” होता है. ऐसा हम इस लिए कहते हैं की इसकी सजीवता का अनुभव हम सभी ‘सजीव’ को होता है. भले ही वह निह्मुख ही क्यों न हो. पेड़ पौधे,जानवर और मानव जाती सभी के लिए यह सजीव होता है.
उपवन हमें भरपूर आक्सीजन देता है. उपवन हमें विभिन्न तरह के लोगों से मिलवाता है. बहुत निराश्रितों को आश्रय देता है. कुछ लोगों और कुछ जानवरों तथा कुछ पंक्षियों का तो बसेरा या रैन-बसेरा उपवन ही होता है. हम सभी उन्मुक्तता के साथ उपवन का किसी न किसी तरह आनंद लेते रहतें हैं. मात्र मानव ही नहीं धार्मिक कथाओं के अनुसार देवी-देवता भी इस मोहिनी के दीवाने हुआ करते थे.
रामायण के अनुसार श्रीराम ने पहली बार माँ जानकी को पुष्प वाटिका में ही देखा था.किम्वदंती है की सीताजी फुलहर नामक स्थान में जहाँ राजा जनक की फूलों की वाटिका थी वहीँ फूल लोढ्ने अर्थात चुनने जाया करती थी. यह स्थान जनकपुर के पास है.
श्याम की बंशी की धून पर राधा उपवन में ही रास रचाती थीं. बहुत सारे प्रमाण मिल जायेंगे जिस से पता चलेगा की देवी देवताओं को भी उपवन बहूत पसंद था.
कवि कालिदास ने शाकुंतलम में भी उपवन की बहुत व्याख्या किया है, कवि पौराणिक हों या आधुनिक सभी ने कहीं न कहीं उपवन की चर्चा किसी न किसी रूप में जरूर किया है.
उपवन के माध्यम से हम विभिन्न प्रकार के लोगों से मिलते है. अगर आप अक्सर उपवन में सैर करने जाते हों तो अक्सर भिन्न भिन्न लोगों से आपकी समागम होगी.
मैं कुछ अपनी निजी अनुभव इस ब्लॉग के माध्यम से कहानी के रूप प्रस्तुत करना चाहती हूँ. दरअसल बाल-समय से मेरी रूचि रही है उपवन में घंटों बैठ कर समय व्यतीत करना. इस रूचि के वजह से मैं बिभिन्न लोगों से मिलती रहती थी और बातचीत के माध्यम से उनके बारे में बहुत कुछ जन जाती थी. कुछ दुखी लोग दुख बाँट कर हल्का होना चाहते थे,कुछ लोग अपने सुखों को बंटाना चाहते थे तथा कुछ लोग अपने स्वप्नों को बाँटना चाहते थे. और इस तरह मुझे नई-नई कहानियों का प्लाट मिलता चला गया. इन्हीं कहानियों को मैं क्रमशः प्रस्तुत करुँगी. आशा है आप सभी को रुचिकर लगेगा.
डा.रजनी.

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