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गृहणी होती है घर की शोभा
घर के कोने-कोने को संवारती
फूलों की तरह खुशबुओं से महकाती
हर रिश्तों को अपनी मिठास से संवारती
बड़े-बूढ़े-बच्चों पर जान छिड़कती
हर सदस्यों को जीने की राह दिखाती
परायों को भी अपना बनाती
संगिनी बनकर पति को मार्गदर्शन देती
ढाल बनकर घर को बचाती
जीवन की धुप-छाँव में
स्वयं अकेली राह जाती
गृहणी तेरी यही कहानी
फिर भी गृहणी तो है
हर घर की शोभा.
–डा. रजनी
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