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टी.वी. और समाचार पत्रों के माध्यम से पता चला है की शहर में ६५ रुपया कमानेवाला तथा गाँव में ३५ रूपया कमानेवाला गरीब नहीं है.तो गरीब है कौन ?
६५ या ३५ कमाने वाला किसी तरह एक जन का पेट भर सकता है .फिर उसके माँ-बाप ,पत्नी और बच्चे का क्या होगा ?सर्कार कहती है सभी को शिक्षित होना चाहिए .ऐसे में बच्चों के पढाई के पैसे कहाँ से आयेगा ? मूलभूत आवश्कता रोटी कपड़ा और माकन .रोटी के आलावा मानव कहाँ से पैसे लायेगा ?बच्चों की शादी कहाँ से करेगा ?भिखारी भी इतना पैसा मांग लेता है दिनभर में .सरकार के अनुसार तो भारत में गरीबी है ही नहीं यह दोहरी मानसिकता क्यों ?मेरे अनुसार तो सभी सभी राजनीतिज्ञओं को पैसठ रूपए शहर वालो को तथा पैतीस रूपए ग्रामीण क्षेत्र के नेताओ को भी मिलना चाहिए .वे अपनी गृहस्थी उतनी आय में चला कर दिखाएँ तो सही. अगर सरकार गरीबी नहीं मिटा सकती तो मत मिटाए लेकिन इस तरह की हास्यास्पद कथन तो नहीं कहे. उन्हें अपने स्तर से गरीबी दूर करने दें. पैसठ रूपया कमाने वाला गरीब नहीं हा तो पैसठ रुपये प्रति दिन कमाने के लिए महीने की आमदनी हुई उनीस सौ पचास रुपये एक व्यक्ति के परिवार में कम से कम पांच लोग होते हैं. बूढ़े माता पिता,पत्नी (जो कमा नहीं सकती). माता पिता तथा बचो के देख भाल के लिए, इस परिवार को चलाने के लिए प्रति माह बीस किलो आंटा तेरह रूपये प्रति किलो के हिसाब से बीस गुने पंद्रह बराबर तीन सौ, नमक, तेल, सब्जी इत्यादि के लिए आठ सौ, बच्चे के लिए दूध कम से कम नौ सौ .
उपरोक्त खर्चे के लिए दो हज़ार चाहिए, बाकी बूढ़े माँ-बाप की दवा और बच्चो की पढाई, मकान किराया, बिजली, रसोई, पकाने हेतु इंधन का खर्च इत्यादि कहा से लायेगा? और अगर इन चीज़ों में खर्च करेगा तो महीने में कुछ दिन भूका रहना पड़ेगा, अर्थात सर्कार के अनुसार, जिस व्यक्ति का परिवार महीने में भूका रहता हो, वाही गरीब है. वाह! रे! गरीबी की परिभाषा! अगर जरीबी पैसठ रुपये से कम कमाने वाला है तो इसके दुगुने कमाने वाला अर्थात एक सौ तीस रुपये कामने वाला बहुत धनि मन जाएगा, अगर यह सच है तो सबसे पहले मंत्रियों, संसदओं एवं विधायकों को मात्र एक सौ पैंतीस रुपये प्रति दिन की हिसाब से तनख्वाह
दिया जाये. अगर यह संभव है तो देश में भूके रहने वाले लोगों को उपरोक्त लोगों की तनख्वाह से होने वाली बचत राशि से भोजन करा सकते हैं और शायद तब हम हिंदुस्तान को धनि देश में गिन पाएंगे.
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