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वहम -एक परेशानी !!

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जिस बात से मैं बारम्बार आहत होती हूँ वह है वहम. वहम आखिर है क्या? कुछ मानव की मानसिक विकृति. वहम बिभिन्न प्रकार के होतें हैं. लेकिन, यहाँ मैं”बुरे नजर यानी नज़र लगने के बारे में कुछ लिखना चाहती हूँ.. अपने को सुशिक्षित मानने वाला व्यक्ति भी इसका शिकार होता है. तथाकथित आधुनिकता से परिपूर्ण व्यक्ति भी बुरे नज़र के वहम से परेशान रहता है.

कुछ बरस पहले की बात है मेरे घर के पास एक अत्यंत आधुनिक बिचार वाला परिवार रहता था. उस घर की मालकिन मेरी परिचिता थी. एक दिन पता चला की वह अस्वस्थ है, मैं उसको देखने उसके घर गई. पूछने पर की क्या हुआ? उसका जबाब सुनकर मैं आश्चर्यचकित हो गई- उसका यह कहना कि मुझे नज़र लग गई है, पड़ोस वाली चाची ने नज़र लगा दिया है. यह सुनकर मैं परेशान हो गई. इच्छा तो हुई उसे झाड़ लगाऊं लेकिन उसकी अस्वस्थता के वज़ह से मैं चुप रह गई. क्या आधुनिकता केवल दिखवा था. मन से इतनी ओछी ! जिसके बिषय में उसने कहा था वास्तव में वह अत्यंत ही शालीन थीं. मेरा मन मायूस हो गया.
दूसरी घटना याद करके मुझे हंसी भी आती है. यह घटना उस बक्त की है जब मैं चेन्नई में शिक्षिका थी.एक दिन जब मैं स्कूल गई तो प्रिंसिपल से लेकर सभी शिक्षिका ने कहा की आज आप बहोत सुन्दर दीख रही हो -कारण था मेरा चश्मा लगाना. एक शिक्षिका को मुझसे आगाध – स्नेह था. वह उसदिन मुझे एकांत में ले कर गई और अपनी मुट्ठी में थोड़ी मिटटी लेकर मेरी नज़र उतारने लगी. मेरे पूछने पर उसने कहा तुझे सबकी नज़र न लगे इसलिए. उसके अनन्य स्नेह से मन द्रवीभूत हो गया. उसे हमने समझाया -इस तरह की बातें यदि हम पढ़े लिखे मानव कर सकते हैं तो अन्य की क्या बात,.बच्चों को वहमी बनाओगी क्या. वह मेरी बात से सहमत हो गई तथा उसने शपथ ली कि अब वहम नहीं करेंगे.
मेरी एक सहेली की नौकरानी ने काम छोड़ दी तो उसका यह कहना कि मेरी कामवाली को किसी ने नज़र लगा दिया. उससे तो मेरी बहस भी हो गई थी.
रूडकी में मेरी एक दोस्त सदैव अस्वस्थ रहा करती थी, हम जब भी उसका पता लेने जाते थे तो उसकी एक ही बात होती थी ” पता नहीं भाभीजी मुझे किसकी बुरी नज़र लग गई.” मैंने उसे समझाया और सही इलाज करवाने को कहा. अब वह ठीक है. और अब कोई बुरी नज़र भी नहीं लग रही है.
ये कौन सी बात हुई, शारीरिक कष्ट हो, बच्चों का रिजल्ट ख़राब हो , पति का प्रमोशन न हो, यानी अपने मन कि बात न हो तो कमजोर लोग अपनी विश्लेषण करने के बजाय बस पलायन के उपाय ढूंढ लेतें हैं और आसानी से अपने मन को मना लेतें हैं कि “नज़र लग गई है.”. वह रे मानसिकता! भारत के किसी भी क्षेत्र में जाओ वहां बुरी नज़र को मानने वाले असंख्य मिल जायेंगे.
मेरी दृष्टि में यदि इस वहम रूपी मानसिक रोग का इलाज नहीं होगा तो यह महामारी के रूप में फ़ैल जाएगा. यह तो कैंसर से भी घटक है. अगर इसकी रोक थम न हो तो कुछ दिन बाद लोग पड़ोस को छोड़ कर अपने परिवार के सदस्यों पर शक करेंगे कि भाई ने,दीदी ने, चाचीने, सासने, ननद ने यानी कि हर रिश्ते में आनेवालों पर उंगली उठाने लगेंगे.मानव के इस विकृत मानसिकता का लाभ उठातें हैं कुछ पाखंडी. अपनी जेबें भरतें हैं. कई परिवार,कितनी बहु बेटियां इस तरह के ढोंग के शिकार हो चुकें हैं.
अतः हम सभी नागरिकों से अनुरोध है कि हम सभी मिलकर इस सामाजिक कोढ़ का अंत करें. इसका सबसे सरलतम उपाय है – ऐसा कोई व्यक्ति या तो हमारे परिवार का हो या पडोसी हो या कोई मित्र उसे बहुत प्यार से इस वहम रुपी विकराल समस्या से निजात दिलाने का प्रयत्न करना चाहिए.
वहम मात्र बुरे नज़र का ही नहीं होता वरन बहोत सारी और भी समस्याएँ हैं, जैसे किसी पर शक करना. शक करना तो और भी भयंकर समस्या है. पति-पत्नी के मध्य तो यह बहोत ही बिकट समस्या है.ऐसे घर में तो जीना ही कठिन हो जाता है. उस घर के बच्चों का तो भगवन ही मालिक है.
तात्पर्य यह है कि हमें ऐसे लोगों कि सदैव मदद करनी चाहिए. जैसे वृक्ष अपने सर पर गर्मी सह लेता है,परन्तु अपनी छाया से औरों को गर्मी से बचाता है वैसेही हम सभी यह प्रण करें कि वहमी लोगों का वहम दूर करने में थोडा कष्ट भी हो तो भी कष्ट सहेंगे लेकिन रोगमुक्त अवश्य करेंगे जिससे भारत वर्ष का प्रत्येक निवासी प्रफ्फुल रहें.
मैं इस प्लेटफोर्म के माध्यम से टी.वी. सीरियल बनाने वालों से आग्रह करना चाहती हूँ कि इस तरह के सीरियल न बनें जिस से वहम को बढ़ावा मिलता हो.

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