Menu
blogid : 6094 postid : 37

स्वप्न

My View
My View
  • 227 Posts
  • 398 Comments

जो जाति केवल स्वप्न देखती है, वह जीतेजी मर जाती है, पर वह उससे पहले मर गई है, जिसने स्वप्न नहीं देखे.

देवता मनुष्य जाति के स्वप्न कभी मरते नहीं इसीलिए तो देवता अमर हैं.
स्वप्नका भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रहा है. दिन भर परिश्रम से क्लांत मनुष्य रात में जब सोता है, तो गहरी निद्रा में उसे कभी- कभी विविध प्रकार के स्वप्न दिखलाई परते हैं. इन स्वप्नों में कुछ तो ऐसे सुखद होतें हैं कि जिन्हें देखते हुए यदि नींद खुल जाती है, तो व्यक्ति बार- बार अपनी इष्ट देवी या अपने इष्ट देव का या अपने किसी आराध्य देव को मानाने लगता है कि पुनः नींद में उस मनोरम स्वप्न कि पुनरावृति हो, और उसकी श्रृंखला बड़ी लम्बी हो और कभी -कभी जब किसी बुरे या डरावने स्वप्न को देखता है तो उसका अंतर्मन काँप उठता है,उसकी नींद खुल जाती है, और वह डरता रहता है कि पुनः नींद में कहीं वही सपना न दृष्टिगत हो जाये. वह उठने पर भगवान से प्रार्थना करता है कि वह दुह्स्वप्न यथार्थ जगत में न आवे- दुह्स्वप्न का प्रतिफल उसे तत्वतः न भोगना पड़े. कुछ स्वप्न स्म्रितिपथ में बने रहतें है और कुछ नींद तक ही सिमित रहतें हैं. उनके स्मृति का कोई चिन्ह नहीं रह जाता. कुछ ऐसे भी स्वप्न होते हैं,जो कई कई रातों तक बार, बार आते हैं, मानव मन को प्रसन्न या दुखी बनाते रहतें हैं. यह एक बिचित्र स्थिति है, सुनते हुए भी नहीं सुनता है. स्वप्न प्रायः ऐसा ही है. आँखें बंद और सारा संसार पास में. कभी नियाग्रा के जल प्रपात की झर झर ध्वनि कानों में गूंजती रहती है और कभी गंडक को सामने देख कर भी बाढ के समय के प्रचंड प्रवाह की ध्वनि नहीं सुनाई पड़ती. बिचित्र है यह स्वप्न संसार. इसका रहस्य क्या है, क्या इसमें कोई विज्ञानं निहित है,क्या विज्ञानं के धरातल पर इसे जांचा-परखा जा सकता है, यह चिंतन सभ्यता के लिखित इतिहास से ले कर आज तक प्राच्य और पाश्चात्य विचारधाराओं में सामान रूप से व्याप्त है. संपूर्ण वैदिक साहित्य स्वप्नों के सम्बन्ध में तथ्यात्मक विवरणों ही प्रस्तुति करता है.
भारतीय स्वप्न विद्याविद स्वप्नों को एक धार्मिक प्रक्रिया के रूप में भी लेतें हैं. वे स्वप्नों के माध्यम से भविष्य में होने वाली घटनाओं की जानकारी भी प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं. इसकेलिए तंत्रों में स्वप्नेश्वरी देवी, स्वप्नावाराही आदिक अनुष्ठान के कई कल्प बतलाये गए हैं, साथ ही दुह्स्वप्नों से व्यक्ति आधारित नहीं हो, इसकेलिए विविध शांतियों के शास्त्रीय बिधान भी निर्दिष्ट किये गए हैं. अतः स्वप्न संसार को हमारी परंपरा केवल कपोल कल्पना नहीं मानती अपितु यथार्थ के धरातल पर भी उसका मूल्याङ्कन करती है.
अगली बार हम यंहा बिभिन्न प्रकार के स्वप्नों के दृश्य फल के बारे में चर्चा करेंगे.
क्रमशः ……..

Read Comments

    Post a comment