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मेरे पापा

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मेरे पापा जैसे महान व्यक्ति मेरी दृष्टि में कोई नहीं है. मैं नाम का ही जमाता हूँ,मुझे तो वे सदैव ज्येष्ठ पुत्र ही मानते हैं.
मेरी छोटी सी तकलीफ नहीं सहन कर सकतेअ. जब कभी मैं संकट में पड़ा वो हर बार संकटमोचक की तरह मेरा सारा कष्ट दूर कर देते थे. मैं बहुत सौभाग्यशाली हूँ जो मुझे इतने अच्छे पापा मिले.
यह मेरी शादी के समय की वाक्या है. पापा मेरी शादी की बात करने मेरे गाँव आये थे. बाबूजी से बात कर रहे थे और सरे चाचा लोग भी बात चित में सामिल थे. मैं वहां नहीं था, बल्कि आँगन में बैठा था. चाचा आँगन में आये और मुझसे कहा “बेटा लड़की तो और भी मिल जाएगी लेकिन ऐसा श्वसुर नहीं मिलेगा. वास्तव में उनका कथन अक्षरसः सत्य प्रमाणित हुआ.
आज के यूग में इतना स्नेही पुरुष दूसरा नहीं हो सकता है. उनके विद्वता के विषय में कहना तो सूर्य को दीपक दिखने जैसा है. अपने छात्रों के प्रति इतना स्नेह ,इतनी ममता हमने किसी अन्य शिक्षक में नहीं देखा. जब कभी मैं उनके पास जाता हूँ तो गर्व से मन प्रफ्फुलित हो जाता है, उनकी लोकप्रियता देख कर.
जब वो प्रो.वि.सी. थे तो भी वो इतने ही सरल थे. उस समय उन्होंने अनेकों असहाय लोगों की मदद की. सरलता उनका स्वाभाव है.
जब भी मैं अस्वस्थ रहता हूँ तो उनका फ़ोन जरूर आता है.पूछते हैं की क्या स्वस्थ तो हैं. उनकी आषिस भी फलित होता है. मुझे हमेसा कहते थे की चिंता न करें दुख जरूर दूर होगा; और सच आज मैं सुखी हूँ. यह उन्हीं का अशिर्बाद है.
इश्वर से यही प्रार्थना है की वे सदैव स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें; हमें इसी तरह स्नेह एवं आशीर्वाद प्रदान करते रहें . इतने परोपकारी तथा सर्वगुण सम्पन्न पापा को कोटिशः नमन.
दुर्गेश नंदन झा

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