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रात हमने आगाह-द वार्निंग सिनेमा देखि. यह सिनेमा आतंकबाद से सम्बंधित है. निर्देशक का प्रयत्न सराहनीय है. आतंकियों का यह कहना -“जेहाद करो जन्नत मिलेगा” को गलत साबित करने का अच्छा प्रयाश है. रूह को सत्य मान कर उचित सन्देश दिया है.जात पात कुछ नहीं है. हम सब एक हैं. भारतीय हैं. मुझे वैसे भी ऐसे लोगो पर तरस आता है जो पूछते है की आप कहाँ से आये हैं? पूरब के हो? दक्षिण के हो? गुजराती हो वगैरह वगैरह.
इस सिनेमा के मुख्या पत्र मंदिर मस्जिद दोनों को मनाता है.आतंकबादी जब उसे मरते हैं, तो वह कहता है की तुम्हें बहूत कष्ट होगा.हुआ भी यही. आतंकबादी के मरने के बाद भी उसकी आत्मा भटकती रही. तव उसे अपनी भूल का एहसास होता है. आत्मा प्रत्येक तरह से मृतक के परिवार की सहायता करता है. संकट की घडी में उसकी बेटी ,पत्नी एवं उसके सम्बन्धियों की रक्षा करता है.
अंत में अनुपम खेर को फकीर बनाकर निर्देसक रूह की लीखाबत को पढाता है.फकीर की सलाह से रूह से उसकी पत्नी का यह कहना “हमने तुझे माफ़ किया, तुम्हें मुक्ति मिले अत्यंत ही मार्मिक है. ऐसा एक भारतीय नारी ही कर सकती है.
कथानक को नवीनीकरण करके प्रस्तुत करना तथा समाज की कुरीतियों को दूर करने का प्रयत्न करना लेखक की महानता का परिचायक है.
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